History of Ranthambore Fort in Hindi – रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में

Ranthambore Fort राजस्थान का एक बहुत ही शानदार किला है जो राज्य के रणथंभौर में स्थित चौहान शाही परिवार से संबध रखता है। बताया जाता है कि यह शाही किला 12 वीं शताब्दी से अस्तित्व में है और यह राजस्थान में उन लोगों के लिए एक परफेक्ट पर्यटन स्थल है

जो रॉयल जीवन को देखने के इच्छुक हैं। यह आकर्षक किला रणथंभौर नेशनल पार्क के जंगलों के बीच स्थित है, जहां पर नेशनल पार्क से किले का दृश्य और किले से पार्क का दृश्य दोनों ही देखने लायक है।

रणथंभौर किले का इतिहास – History of Ranthambore Fort

रणथंभौर किले को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है क्योंकि यह राज्य का एक खास पहाड़ी किला है। रणथंभौर नेशनल पार्क के घने जंगल कभी राजघराने का शिकारगाह थे।

रणथंभौर किला बड़ी- बड़ी दीवारों से घिरा हुआ है, जिसमें पत्थर के मजबूत मार्ग और सीढ़ियाँ हैं जो किले में ऊपर की तरफ लेकर जाती है।

 किले का नाम  रणथंभौर किला
 स्थान  सवाई माधोपुर
 राज्य  राजस्थान (भारत)
 निर्माण  ई.स 944
 निर्माता  चौहान राजा रणथंबन देव
 किले के दरवाजे   7 दरवाजे 
 दरवाजे के नाम   नवलाखा पोल, हथिया पोल , गणेश पोल, अंधेरी पोल , दिल्ली पोल , सत्पोल , सूरज पोल

Ranthambore Fort के बड़े गेट, स्तंभ और गुंबदों, महल और मंदिरों के साथ इसकी राजस्थानी वास्तुकला यहां आने पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। यहां पार्क का रिजर्व क्षेत्र कई तरह के जानवरों और पक्षियों का घर है।

किले के पास पर्यटकों को आम तौर पर बहुत सारे बंदर देखने को मिलते हैं। अगर आप भाग्यशाली हैं तो यहां आपको राष्ट्रीय उद्यान में रहने वाले मौर भी दिखाई दे सकते हैं।

अगर आप इस किले को देखने के लिए जाना चाहते हैं यह फिर इसके बारे में और जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को पढ़ते रहे इसमें हम आपको रणथंभौर किले का इतिहास, वास्तुकला और घूमने के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।

रणथंभौर किले का निर्माण – Construction of Ranthambore Fort

इस दुर्ग का निर्माण 944 ई मे चौहान राजा रणथान देव ने बनवाया था ओर उसी के नमानुसार इसका नाम रनथंभपुर रखा गया जो कालांतर मे रणथम्भौर हो गया

एक किंवदंती के अनुसार रणथम्भौर का दुर्ग चंदेल राव जेता ने बनवाया था अधिकांश इतिहासकारो की मान्यता है की 8 वी सताब्दी के लगभग महेश्वर के शासक रांतिदेव ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था।

रंतिदेव संभवत चौहान शासक था क्योकि यह तथ्य तो निर्विवाद है कि चौहनों ने इस प्रदेश पर करीब 600 वर्षों तक शासन किया था चाहे जो भी इसका निर्माता रहा हो किंवदंतियो एवं एतिहासिक आधारो पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि 10 वी सताब्दी तक यह दुर्ग अस्तित्व मे आ गया था

रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में - History of Ranthambore Fort in Hindi
रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में – History of Ranthambore Fort in Hindi

ओर 12 वी सताब्दी तक यह दुर्ग इतना प्रसिद हो गाया कि उस समय के लगभग सभी एतिहासिक ग्रन्थों मे इस दुर्ग की भौगोलिक ओर सामरिक स्थिति का उल्लेख मिलता है।

हम्मीर रासो के अनुसार प्रारम्भिक नाम रणस्तंभपुर था सामान्य रूप से इस दुर्ग मे कोई कलात्मक भवन नहीं है फिर भी इसकी विशालता मजबूती ओर दुर्ग की घाटियों की रमणीयता दर्शकों को अपनी ओर खिच लेती है ।

रणथम्भौर का दुर्ग का प्रवेश द्वार नौलखा दरवाजा कहलाता है जो बेहद मजबूत दिखाई देता है इस द्वार के दरवाजो पर एक लेख खुदा हुआ है इस लेख के अनुसार इस दरवाजे का जिर्णौद्धार जयपुर के महाराजा जगत सिंह ने करवाया था।

इस प्रवेश द्वार से अंदर प्रेवेश करने पर सात मील की परिधि मे बना हुआ किले का भू भाग दिखाई देता है जिसमे कई मंदिर महल जलाशया छतरिया मस्जिदे दरगाह ओर हवेलिय बनी हुई है।

नौलखा दरवाजे से प्रवेश कर आगे चलाने पर एक त्रिकोणी है इस त्रिकोणी को तीन दरवाजों का समूह भी कहते है जिसे चौहानवंशी शासकों के काल मे तोरण द्वार मुस्लिम शासको के काल मे अंधेरी दरवाजा ओर जयपुर के शासकों द्वारा त्रिपोलिया दरवाजा कहा जाता है।

इस दरवाजे के ऊपर साधारण भवन बने हुये है जो सेनिको ओर सुरक्षाकर्मीओ के निवास हेतु प्रयोग मे लाये जाते है इस स्थान से भी चौकियो ओर घाटियो की निगरानी रखी जाती है इस स्थान से थोड़ी दूर आगे चलने पर हमे 32 विशाल खंभे वाली 50 फीट उची छतरी देखाई देती है।

यह छतरी चौहान राजा हम्मीर ने अपने पिता की मरत्यु के बाद उसी समाधि पर बनवाई थी इस छतरी के गुंबद पर सुदर नक्काशी की गई है इस गुम्बद पर कुछ आकृतीय भी उत्कीर्ण देखाई देती है।

गर्भगृह मे काले भूरे रंग के पत्थर से निर्मित एक शिवलिंग है इस छतरी के पास ही लाल पत्थर ही अधूरी छतरी के अवशेष देखाई देते है इस बारे मे स्थानीय लोगों की मान्यता है कि सांगा की हाड़ी रानी कर्मवती ने इसे बनवाना आरंभ किया था लेकिन इसके अचानक किले से चले जाने के कारण यह छतरी अधूरी रह गई थी।

रणथम्भौर का दुर्ग के मध्य मे राजमहल भग्नावशेष दिखाई देते है यह राजमहल सात खंडो मे निर्मित है जिनमे तीन खंड ऊपर ओर चार खंड नीचे बने हुये है यह राजमहल जीर्ण शीर्ण हो चुका है फिर भी इसके विशाल खंभे सुरंगनुमा गलियारे भैरव मंदिर रसद कक्ष शस्त्रागर आदि उस युग की स्थापत्य कला के नमूने है।

इस महल के पिछवाड़े मे एक उध्यान है जिसमे एक सरोवर भी है इस उध्यान से एक मस्जिद के खण्डहर देखाई देते है जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने दुर्ग पर अधिकार करने के बाद बनवाया था

राजमहलों के आगे चौहान वंशी शासको द्वारा निर्मित गणेश मंदिर है इस गणेश मंदिर की आज भी बड़ी प्रतिष्ठा है इस मंदिर के पूर्व की ओर एक अज्ञात जल स्त्रोत का भण्डार है इस कुंड मे वर्ष प्रयत्न स्वच्छा शीतल जल रहता है।

इस जल स्त्रोत से थोड़ी दूर विशाल कमरों वाली इमारत है ये इमरते एक खाद्य सामग्री के गोधम थे गणेश मंदिर के पीछे शिव मंदरी भी है एसी किंवदंती है की अलाउद्दीन खिलजी को परास्त करके विजयी हम्मीर ने जब अपनी रानीओ जौहर की घटना सुनी तब वे बड़े दुखी हुये

ओर उन्होने अपने अराध्ये देव शिव को अपना सिर काटकर अर्पित कर दिया इस शीव मंदिर के पास सामंतों की हवेलिया तथा बादल महल है।बादल महल जाली झरोखों अलंकृत है बादल महल से करीब एक किलोमीटर दूर एक ओर विशाल इमारत है जिसे हम्मीर कचहरी भी कहते है।

चौहान शासक इस कचहरी मे बेठकर प्रजा को न्याय प्रदान करते थे बड़े बड़े खंभो बरामदो कक्षो से बनी कचहरी की विशाल इमारत अत्यंत आकर्षक प्रतीत होता है यहा से भी थोड़ी दूरी पर दिल्ली दिशा की ओर देखता हुआ एक दरवाजा है जिसे दिल्ली दरवाजा कहते है।

रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में - History of Ranthambore Fort in Hindi
रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में – History of Ranthambore Fort in Hindi

रणथम्भौर का दुर्ग के प्रवेश द्वार के बाई ओर जोगी महल है कहा जाता है की यहा एक ऋषि रहता था राजा ने उस ऋषि के रहने के लिए इस भवन का निर्माण करवाया था किन्तु कालांतर मे यहा साधुओं के डेरे लगने लग गए इसलिए इसका नाम जोगी महल पड गया।

एक किंवदंती के अनुसार बूंदी के राव सुरजन हड़ ने सघन वृक्षो के मध्य इस भवन का निर्माण करवाया था जो गुप्त सेनिक गतिविधियो के कम आता है यहा भवन पूर्णत खंडहर हो चुका था।

लेकिन 1961 ई मे राजस्थान सरकार के वन विभाग ने इसका नया निर्माण करवाया आजकल बाग परियोजना के अंतर्गत यह नव निर्मित भवन पर्यटको का विश्राम गृह बना हुआ है

इस प्रकार रणथम्भौर का विशाल एक मजबूत दुर्ग है शोर्य ओर सुरक्षा का अदभुत संगम स्थल है तथा चौहान शासको की किर्ति का अमर स्मारक है ।

रणथंभौर किले की वास्तुकला – Architecture of Ranthambore Fort

रणथंभौर का किला, रणथंभौर नेशनल पार्क के बीच एक बड़ी सी चट्टान पर स्थित है। इस किले में एक बहुत विशाल सुरक्षा दीवार और सात द्वार हैं जिनके नाम नवलखा पोल, हाथी पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली पोल, सतपोल और सूरज पोल हैं।

किले में एक कचहरी भी स्थित है जिसको हम्मीर कचहरी कहते हैं, इस कचहरी में तीन कक्ष है जिसमें केंद्रीय कक्ष सबसे बड़ा है। बरामदे की छत को सपोर्ट देने के लिए संरचना में खम्बें है।

इस किले के अंदर हम्मीर सिंह के शासनकाल के दौरान बना एक महल भी स्थित है जिसको हम्मीर पैलेस कहा जाता है। इस महल में कक्ष और बालकनी है जो छोटे पारंपरिक दरवाजों और सीढ़ी से जुड़े हुए हैं।

इस तीन मंजिला इमारत में 32 खंभे हैं जो छत्रियों या गुंबदों को सपोर्ट देते हैं। इस किले की संरचना में एक बरामदा है जो भवन के प्रत्येक स्तर तक लेकर जाता है।

रणथंभौर का किले में एक 84 स्तंभों वाला एक बड़ा हॉल भी है जिसकी ऊंचाई 61 मीटर है। इस हाल को बदल महल के रूप में जाना जाता है और इसका उपयोग सम्मेलनों और बैठकों के लिए किया जाता था।

किला परिसर के अंदर गणेश मंदिर भी स्थित है यहां आने वाले भक्तों और पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है। मान्यताओं की माने तो बता दें कि अगर कोई अपनी इच्छाओं को लेकर भगवान गणेश को पत्र लिखकर भेजता है तो उसकी इच्छाएं जरुर पूरी होती हैं।

रणथंभौर किले के दरवाजे – Ranthambore Fort Doors

रणथंभौर किला ने सैकम्भारी के चाहमना साम्राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया। यह महाराजा जयंत द्वारा निर्मित होने के लिए कहा जाता है।

यादवों ने इस पर शासन किया और बाद में दिल्ली के मुस्लिम शासकों ने किले पर कब्जा कर लिया। हमीर देव रणथंभोर का सबसे शक्तिशाली शासक थे । निम्नलिखित पोल्स किले में स्थित हैं:

नवलाखा पोल:

यह पहला दरवाजा है, जो कि एक पूरब पूर्व की ओर स्थित है और इसकी चौड़ाई 3.20 मीटर है। गेट में चिपका हुआ एक तांबा प्लेट शिलालेख बताता है कि मौजूदा लकड़ी के दरवाजों को जयपुर के सवाई जगत सेह की अवधि के दौरान प्रदान किया गया था।

हथिया पोल:

दक्षिण-पूर्व का सामना करने वाला दूसरा द्वार 3.20 मीटर चौड़ा है। यह एक तरफ प्राकृतिक चट्टान से घिरा है और दूसरी ओर किले की दीवार है। गेट पर एक आयताकार गार्ड कक्ष बनाया गया है।

गणेश पोल:

यह तीसरा गेट है, जो दक्षिण की तरफ 3.10 मीटर चौड़ा है।

अंधेरी पोल:

यह उत्तर की ओर वाला अंतिम गेट है और 3.30 मीटर चौड़ा है। यह दुर्गों की दीवारों से दोनों तरफ घिरा है और पक्षों पर अनुमानित बालकनियों के साथ एक अवकाशित ओजी आर्च के साथ प्रदान किया गया है।

दिल्ली गेट:

यह उत्तर-पश्चिम कोने में स्थित है और लगभग 4.70 मीटर चौड़ा है। गेट में कई गार्ड कोशिकाएं भी हैं।

सत्पोल :

यह दक्षिण की ओर का सबसे बड़ा गेटवे है और नाले के साथ किले के पश्चिमी तरफ स्थित है। यह 4.70 मीटर चौड़ा है और दो मंजिला गार्ड की कोशिकाओं के साथ प्रदान की जाती है।

सूरज पोल:

तुलनात्मक रूप से, पूर्वी तटों के साथ पूर्व की तरफ से यह छोटा प्रवेश द्वार है। यह 2.10 मीटर चौड़ा है।

रणथंभौर किले में अन्य स्मारक :

किले में बड़े पैमाने पर दीवारें और द्वार हैं। किले के अंदर बत्तीस खम्भा छात्रा, हैमर बडी कच्छारी, हम्मीर पैलेस, छोटी कछारी और अधिक जैसे कई संरचनाएं हैं। किले में नवलला पोल, हाथिया पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली गेट, सत्पोल, सूरज पोल के नाम से सात दरवाजे हैं।

Ranthambore Fort के अंदर के मंदिर –

12 वीं सदी में रणथंबोर किले में रहने वाले सिद्धेशनासुरी ने इस स्थान को पवित्र जैन तीर्थों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है।

रंथामबोर किला के मुख्य प्रवेश द्वार के पास गणेश मंदिर एक हिंदू तीर्थयात्रा है और हर साल गणेश चतुर्थी पर पूजा करने वालों के साथ भारी भीड़ है।

Ranthambore Fort के शासक –

ई.स.1192 में तहराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी से हारने के बाद दिल्ली की सत्ता पर पृथ्वीराज चौहान का अंत हो गया और उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोरको अपनी राजधानी बनाया था।

गोविन्द राज के अलावा उनके बाद के राजाओ वाल्हण देव, प्रहलादन, वीरनारायण, वाग्भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, हम्मीरदेव, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, शेरशाह सुरी, अल्लाऊदीन खिलजी, राव सुरजन हाड़ा और मुगलों के अलावा आमेर के राजाओं का समय-समय पर नियंत्रण रहा  | 

लेकिन इस किले की सबसे ज्यादा प्रसिद्धि हम्मीर देव ई.स 1282-1301 के शासन काल में रही। हम्मीरदेव का 19 वर्षो का शासन इस किले का स्वर्णिम युग माना जाता है |

हम्मीर देव चौहान ने 17 युद्ध लड़े जिनमे 13 युद्धो में उसे विजय प्राप्त हुई। करीब एक शताब्दी तक ये किलेमें चितौड़ के महराणाओ के अधिकार में रहा। खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को इलाज के लिए इसी किले में लाया गया था।

रणथंभोर किले पर हुवे आक्रमण – Attack on Ranthambore Fort

रणथंभोर किले पर आक्रमणों की लम्बी कहानी है जिसकी शुरुआत दिल्ली के कुतुबुद्दीन ऐबक से शुरू हुई और मुगल बादशाह अकबर तक चलती रही। मुहम्मद गौरी व चौहानो के मध्य इस किले की प्रभुसत्ता के लिये ई.स1209 में युद्ध हुआ।

इसके बाद ई.स1226 में इल्तुतमीश ने ई.स1236 में रजिया सुल्तान ने ई.स1248-58 में बलबन ने, ई.स1290-1292 में जलालुद्दीन खिल्जी ने, ई.स1301 में अलाऊद्दीन खिलजी ने, ई.स1325 में फ़िरोजशाह तुगलक ने, ई.स1489 में मालवा के मुहम्म्द खिलजी ने, ई.स1529 में महाराणा कुम्भा ने, ई.स1530 में गुजरात के बहादुर शाह ने, ई.स1543 में शेरशाह सुरी ने आक्रमण किया।

ई.स1569 में इस दुर्ग पर दिल्ली के बादशाह अकबर ने आक्रमण कर आमेर के राजाओं के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।

अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन की विजय के बाद यह कहा कि “आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया है।’यहाँ पर राजस्थान का पहला युद्ध हुआ ई.स1301 में अलाउद्दीन खिलजी के यह ऐतिहासिक आक्रमण के समय हुआ था।

इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के परिणामस्वरूप वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया था। इसे राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रथम साका माना जाता है।

रणथंभौर किले के बारे में रोचक तथ्य – Interesting facts about Ranthambore Fort

विंध्य पठार और अरावली पहाड़ियों के बीच बना यह किला आसपास के मैदानों से करीब 700 फुट की ऊंचाई के ऊपर पर है और लगभग 7 कि.मी. के भौगोलिक क्षेत्र में फैला हुआ है।

किले के तीनो ओर पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है, जो इसकी सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। इस किले पर अपना आधिपत्य ज़माने के लिए इतिहास में काफी बार आक्रमण हुए थे, साल 1209 मे मुहम्मद गौरी व चौहानो के बीच इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिए भीषण युद्ध हुआ था।

रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में - History of Ranthambore Fort in Hindi
रणथंभौर किले का इतिहास हिंदी में – History of Ranthambore Fort in Hindi

इसके बाद 1226 मे इल्तुतमीश, 1236 मे रजिया सुल्तान, 1248-58 मे बलबन, 1290-1292 मे जलालुद्दीन खिल्जी, 1301 मे अलाऊद्दीन खिलजी, 1325 मे फिऱोजशाह तुगलक, 1489 मे मालवा के मुहम्म्द खिलजी, 1429 मे महाराणा कुम्भा, 1530 मे गुजरात के बहादुर शाह और साल 1543 मे शेरशाह सुरी द्वारा आक्रमण किया गया था।

साल 1569 मे अकबर ने आक्रमण कर इस किले पर आमेर के राजाओ के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।

इस दुर्ग का जीर्णोद्धार जयपुर के राजा पृथ्वी सिंह और सवाई जगत सिंह ने कराया। महाराजा मान सिंह ने इस दुर्ग को शिकारगाह के रुप मे परिवर्तित कराया।

आजादी के बाद यह किला राज्य सरकार के अधीन आ गया, जो साल 1964 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है।

किले के आसपास विभिन्न जल निकायों उपस्थित होने के कारण यहाँ पर आवासीय और प्रवासी पक्षियों की एक बड़ी विविधता देखी जा सकती है।

किले के अंदर गणेश शिव और रामलाजी को समर्पित तीन हिंदू मंदिर भी बने हुए है।

यहां की एक पहाड़ी पर राजा हम्मीर के घोड़े के पद चिन्ह आज भी छपे हुए हैं, ऐसा माना जाता है कि राजा को लेकर घोड़े ने मात्र तीन छलांग में ही पूरी पहाड़ी को पार कर लिया था।

किले के अन्दर बना त्रिनेत्र गणेश का मंदिर काफी प्रसिद्ध है, यहाँ भाद्रपद के महीने में गणेश चतुर्थी का 5 दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जहां पूरे साल दूर-दूर से भक्तों का अवागमन लगा रहता है।

किले का मुख्य आकर्षण हम्मीर महल है जो देश के सबसे प्राचीन राजप्रसादों में से एक है, इसके अलावा राणा सांगा की रानी कर्मवती द्वारा शुरू की गई अधूरी छतरी भी अत्यंत दर्शनीय है।

वर्तमान में क़िले में मौजूद नौलखा दरवाज़ा, दिल्ली दरवाज़ा, तोरणद्वार, हम्मीर के पिता जेतसिंह की छतरी, पुष्पवाटिका, गणेश मन्दिर, गुप्तगंगा, बादल महल, हम्मीर कचहरी, जैन मन्दिर आदि का अपना ही ऐतिहासिक महत्त्व है।

यूनेस्को द्वारा 21 जून 2013 को रणथंभोर किले को विश्व धरोहर स्थल के रूप घोषित किया गया था।

रणथंभौर किले का प्रवेश शुल्क भारतीय नागरिको के लिए 25 रूपए, छात्रों के लिए 10 रूपए और विदेशी नागरिको के लिए 200 रूपए है। यह किला सैलानियों के लिए सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है।

रणथंभौर किले की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय-

अगर आप रणथंभौर किले की यात्रा करने का प्लान बना रहे हैं तो आपको बता दें कि यहां की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय नवंबर और फरवरी के बीच है,

क्योंकि इस दौरान राजस्थान में सर्दियों का मौसम होता है। किले में घूमने का सबसे अच्छा समय दिन में सुबह के समय और शाम के समय रहता है क्योंकि इस समय यहां तापमान काफी कम होता है।

रणथंभौर किले के दर्शन के लिए टिप्स – Tips for visiting Ranthambore Fort

जब भी आप किले की यात्रा पर जाएं तो अपने साथ पर्याप्त पीने के पानी साथ लेकर जाएं जिससे कि आप अपने आप को हाइड्रेटेड रख सकें।

किले के लिए ट्रैकिंग करते समय धुप से बचने उपयुक्त कपड़ें पहनें।

जो भी पर्यटक राष्ट्रीय उद्यान को एक्सप्लोर करना करना चाहते हैं वे जंगल सफारी को पहले से बुकिंग कर सकते हैं।

रणथंभौर में प्रसिद्ध भोजन – Famous food in Ranthambore

रणथंभौर अपने किले और वन्यजीवों के लिए एक आदर्श पर्यटन स्थल है लेकिन यहां आप को कोई खास भोजन नहीं मिलता क्योंकि रणथंभौर में कोई महत्वपूर्ण संस्कृति या अद्वितीय व्यंजन नहीं हैं | 

लेकिन आपको यहां आपको खाने के कई रिसॉर्ट्स उपलब्ध हैं। इसके अलावा आप यहाँ के कई स्थानीय ढाबों को भी आजमा सकते हैं। यहां के ढाबों में आप स्थानीय राजस्थानी और पंजाबी व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं।

रणथंभौर किला कैसे पहुंचे – 

हवाई जहाज से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे :

अगर आप रणथंभौर किले की यात्रा हवाई जहाज से करना चाहते हैं तो बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा जयपुर में स्थित है। किला जयपुर शहर से सिर्फ 180 किमी दूर स्थित है।

जयपुर हवाई अड्डे से किले तक जाने के लिए आप कोई भी कैब या टैक्सी किराये पर ले सकते हैं, इसके साथ ही आप बस सेवा ले सकते हैं।

रेल से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे :

रेल द्वारा Ranthambore Fort रणथंभौर किले की यात्रा करने के लिए यहाँ के निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन सवाई माधोपुर के लिए ट्रेन पकड़नी होगी। यह रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से रणथंभौर जाने के लिए आप किसी भी कैब या टैक्सी की मदद ले सकते हैं।

सड़क मार्ग द्वारा रणथंभौर किला कैसे पहुंचे :

अगर आप सड़क मार्ग से रणथंभौर किला जाने का प्लान बना रहे हैं तो बता दे कि रणथंभौर फोर्ट माधोपुर से सिर्फ 16 किमी की दूरी पर स्थित है। सवाई माधोपुर और रणथंभौर के बीच कई बड़े उपलब्ध हैं। आप सवाई माधोपुर से टैक्सी या कैब की मदद से भी किले तक पहुँच सकते हैं।

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