Gwalior Fort History In Hindi – ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में

gwalior fort in hindi भारत में घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है। ये किला मध्य भारत की सबसे प्राचीन जगह में से एक है। ग्वालियर फोर्ट मध्यप्रदेश स्टेट के ग्वालियर शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है,

जिसे ग्वालियर का किला के नाम से भी जाना-जाता है। इस किले की ऊंचाई 35 मीटर है। यह किला करीब 10वीं शताब्दी से अस्तित्व में है। लेकिन, इस किले में जो किला परिसर है

उसके अंदर मिले शिलालेख और स्मारक इस बात का संकेत देते हैं कि ऐसा भी हो सकता है कि यह किला 6 वीं शताब्दी की शुरुआत में अस्तित्व में रहा हो। इस किले के इतिहास के अनुसार इसे विभिन्न शासकों द्वारा नियंत्रित किया गया है।

ग्वालियर किले को इसकी बनावट के कारण “किलों का रत्न” भी कहा जाता है। यह किला भारत के बीचो-बीच मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है

यह सिर्फ ग्वालियर की नहीं बल्कि पूरे भारत की शान है जो की वर्तमान में एक ऐतहासिक संग्रहालय के रूप में जाना जाता है।

स्थान  ग्वालियर, मध्य प्रदेश
निर्माण   8वीं या 10 वी शताब्दी
निर्माता  राजा मान सिंह तोमर
क्षेत्रफल  3 किलोमीटर
नियंत्रण   कर्ता मध्य प्रदेश सरकार

ग्वालियर किला क्यों प्रसिद्ध है

ग्वालियर के किले को भारत का जिब्राल्टर भी कहा जाता है। ग्वालियर का किला भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण किले में से एक है। इस किले को बड़े ही रक्षात्मक तरीके से बनाया गया है,

इस किले के दो मुख्य महल है एक गुजरी महल और दूसरा मान मंदिर हैं। इन दोनों को मान सिंह तोमर (शासनकाल 1486-1516 सीई) में बनवाया था। गुजरी महल को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गया था।

दुनिया में “शून्य” का दूसरा सबसे पुराना रिकॉर्ड इस मंदिर में पाया गया है। जो इस किले के शीर्ष रास्ते पर मिलता है। इसके शिलालेख लगभग 1500 साल पुराने हैं।

ग्वालियर किला किसने बनवाया था – Gwalior Fort Who

इस किले का पहला भाग शुरुआती तोमर शासन में बनवाया गया था और दूसरा भाग जिसका नाम गुर्जरी महल है वो राजा मान सिंह तोमर ने 15वीं शताब्दी में अपनी प्रिय रानी, मृगनयनी के लिए बनाया गया था।

अब यह संग्रहालय और महल है। एक रिसर्च में यह बताया गया है कि 727 ईस्वी में निर्मित किले के बारे में कहा गया था कि इस किले का history of gwalior fort पूर्व राज्य से जुड़ा हुआ है और इस पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है।

इसमें एक चतुर्भुज मंदिर है जो भगवान् विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर को 875 ईस्वी में बनवाया गया था। इस मंदिर संबंध तेली के मंदिर से है।

प्राप्त दस्तावेज की माने तो 15वीं शताब्दी से पहले Gwalior Fort पर कछवाह, पाल वंश, प्रतिहार शासकों, तुर्क शासकों, तोमर शासकों जैसे राजवंशों का शासन किया था।

ग्वालियर किले का इतिहास – Gwalior Fort History

Gwalior Fort को बनने में कितना वक़्त लगा इसके कोई पुख्ता साक्ष नहीं हैं। पर स्थानीय निवासियों के अनुसार इसे राजा सूरज सेन ने आठंवी शताब्दी में बनवाया था।

उन्होंने इसे ग्वालिपा नाम के साधू के नाम पर धन्यवाद् के रूप में बनवाया। कहा जाता है की साधू ने उन्हें एक तालब का पवित्र जल पीला कर कुष्ठ रोग से निजात दिलाई थी।

साधू ने उन्हें “पाल” की उपाधि से नवाज़ा था और आशीर्वाद दिया था। जब तक वे इस उपाधि को अपने नाम के साथ लगाएंगे तब तक ये किला उनके परिवार के नियंत्रण में रहेगा।

सूरज सेन पाल के 83 उत्तराधिकारियों के पास इस किले का नियंत्रण रहा पर 84 वे वंशज के करण इस किले को हार गए।

ऐतेहासिक दस्तावेज और साक्ष्यों के अनुसार ये किला 10 वी शताब्दी में तो ज़रूर था परन्तु उसके पहले इसके अस्तित्व में होने के साक्ष नही हैं।

परन्तु किले के परिसर में बने नक्काशियों और ढांचों से इसके इसके 6 वी शताब्दी में भी अस्तित्व में होने का इशारा मिलता है; इसका कारण

यह है की Gwalior Fort  में मिले कुछ दस्तावेजों में हुना वंश के राजा मिहिराकुला के द्वारा सूर्य मंदिर बनांये जाने का उल्लेख है। गुर्जरा-प्रतिहरासिन ने 9 वी शताब्दी में किले के अंदर “तेली का मंदिर” का निर्माण कराया था।

चंदेला वंश के दीवान कछापघ्त के पास 10 वी शताब्दी में इस किले का नियंत्रण था। 11 वी शताब्दी से ही मुस्लिम राजाओं ने किले पर हमला किया।

महमूद गजनी ने 4 दिन के लिए किले को अपने कब्जे में ले लिया और 35 हाथियों के बदले में किले को वापस किया, ऐसा तबकती अकबरी में उल्लेख है।

घुरिद वजीर क़ुतुब अल दिन ऐबक जो की बाद में दिल्ली सल्तनत का भी राजा बना ने लम्बी लड़ाई के बाद किले को जीत लिया। उसके बाद दिल्ली ने फिर ये किला हारा पर 1232 में इल्तुमिश ने दोबारा इस पर कब्ज़ा किया।

1398 में यह किला तोमर राजपूत वंश के नियंत्रण में चला गया। तोमर राजा मान सिंग ने किले में किले के अंदर खुबसूरत निर्माण कराये। दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोधी ने 1505 में किले पर कब्ज़ा करने की नियत से हमला किया पर वो सफल नहीं हुआ।

1516 में सिकंदर लोधी के बेटे इब्राहिम लोधी ने दोबारा हमला किया, इस लड़ाई में मान सिंग तोमर अपनी जान गवां बैठे और तोमर वंश ने एक साल के संघर्ष के बाद हथियार डाल दिए।

10 सालों के बाद मुग़ल बादशाह बाबर ने दिल्ली सल्तनत से ये किला हथिया लिया पर 1542 में मुगलों को शेर शाह सूरी से ये किला Gwalior fort हारना पड़ा।

1558 में बाबर के पोते अकबर ने वापस से किले को फ़तह किया। अकबर ने अपने राजनैतिक कैदियों के लिए इस किले को कारागार में बदल दिया।

अकबर के चचेरे भाई कामरान को यही बंदी बना कर रखा गया था और फिर उसे मौत की सज़ा दी गयी थी। औरंगज़ेब के भाई मुराद ओर भातिजून सोलेमान एवं सफ़र शिको को भी इसी किले में मौत की सज़ा दी गयी थी। ये सारी हत्याएँ मन मंदिर महल में की गयी थी।

औरंगज़ेब की मृत्यु की के बाद गोहड के राणाओं के पास इस किले का नियंत्रण चला गया। मराठा राजा महाड़ जी शिंदे (सिंधिया) ने गोहद राजा राणा छतर सिंग के हरा कर इस किले पर कब्ज़ा कर लिया पर जल्द ही वे इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों हार गये।

3 अगस्त 1780 को कैप्टन पोफाम और ब्रूस के नेतृत्व में अर्ध रात्रि छापामार युद्ध के द्वारा ब्रिटिशों ने Gwalior fort पर कब्ज़ा कर लिया। 1780 में गवर्नर वारेन हास्टिंग्स ने गोहड राणा को किले के अधिकार वापस दिलाये। 4 साल बाद मराठाओं ने फिर से किले पर कब्ज़ा कर लिया।

इस बार अंग्रेजों ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि गोहड़ राणा से उन्हें धोखा मिला था। दुसरे मराठा-अंग्रेज युद्ध में दौलत राव सिंधिया इस किले को फिर हार गए।

1808 ओर 1844 के बीच इस किले का नियंत्रण कभी मराठाओं तो कभी अंग्रेजों के हाथ में आता जाता रहा। महाराजपुर के युद्ध के बाद जनवरी 1844 में यह किला अंग्रेजों ने माराठा सिंधिया वंश को अपना दीवान नियुक्त कर के दे दिया।

1857 की क्रान्ति के समय Gwalior Fort में स्थित तकरीबन 7000 सिपाहियां ने कंपनी राज के खिलाफ बगावत कर दी। इस वक़्त भी वस्सल राजा जियाजी सिंधिया ने अंग्रेजों के प्रति अपनी निष्ठां बरकरार रखी।

1858 में अंग्रेजों ने इस किले पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। अग्रेजों ने जिय्याजी को कुछ रियासतें दी पर किले का कब्ज़ा अपने पास ही रखा।

1886 में अंग्रेजों ने पुरे भारत पर नियंत्रण कर लिया ओर उनके लिए इस किले का कोई ख़ास महत्व नहीं रहा इसलिए उन्होंने इसे सिंधिया घराने को दे दिया।

सिंधिया घराने ने भारत के आज़ाद होने तक (1947) इस किले पर राज किया और बहुत से निर्माण भी किये जिसमे जय विलास महल भी शामिल है।

किले को अच्छी देख रेख में रखा गया और इसमें बहुत से निर्माण भी किये गए जैसे की महल, मंदिर, पानी की टंकियां इत्यादि। इसमें मन मंदिर, गुजरी जहाँगीर, शाहजहाँ जैसे कई महल हैं।

यह किला 3 किलोमीटर के क्षेत्रफल में हैं ओर 35 फीट ऊंचा है। पहाड़ के किनारों से इसकी दीवारें बनायी गयी है एवं इसे 6 मीनारों से जोड़ा गया है।

इसमें दो दरवाज़े हैं एक उत्तर-पूर्व में और दूसरा दक्षिण-पश्चिम में। मुख्य द्वार का नाम हाथी पुल है एवं दुसरे द्वार का नाम बदालगढ़ द्वार है। मनमंदिर महल उत्तर-पश्चिम में स्थित है, इसे 15वि शताब्दी में बनाया गया था और इसका जीर्णोद्धार 1648 में किया गाया।

ग्वालियर का किला की संरचना – fort of gwalior

Gwalior Fort में अच्छी तरह से बनाए हुए परिसर के साथ किले के परिसर में कई मंदिर, महल और पानी के टैंक शामिल हैं. यहां के महलों में मान मंदिर महल, गुजरी महल, जहाँगीर महल, शाहजहाँ महल और करण महल शामिल हैं.

यह किला तीन वर्ग किलोमीटर (1.1 वर्ग मील) के क्षेत्र में स्थित है और इसके दो प्रवेश द्वार हैं: मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व की ओर हाथी गेट (हाथी पुल) है जिसमें एक लंबा रैंप है और दूसरा बादलगढ़ गेट पर है दक्षिण-पश्चिम की ओर. मुख्य मंदिर पैलेस उत्तर-पूर्व की ओर बैठता है.

ग्वालियर का किला की मुख्य स्मारक – fort of gwalior

Gwalior Fort में जैन मंदिर किले के अंदर अद्वितीय स्मारक बनाते हैं, जिसमें सिद्धचल गुफाएं और गोपाचल रॉक-कट जैन स्मारक दो क्षेत्र हैं, जो मुगल आक्रमण के दौरान हज़ारों जैन तीर्थंकर मूर्तियों के साथ पूरा हुआ.

तेली का मंदिर और सहस्त्रबाहु (सास-बहू) का मंदिर यहां के दो वास्तुशिल्प रूप से समृद्ध हिंदू मंदिर हैं. गुरुद्वारा बंदी छोर किले के परिसर के अंदर बना एक और पवित्र स्थान है, और यह वह जगह थी

जहाँ सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा बंदी के रूप में रखा गया था. मंदिर पैलेस, गुजरी महल, अस्सी खंबा की बावली, और सूरज कुंड परिसर में पाए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण स्मारक हैं.

  • सिद्धाचल जैन मंदिर की गुफाएं :

सिद्धाचल जैन मंदिर की गुफाएं 7 वीं से 15 वीं शताब्दी में बनाई गई थीं। Gwalior Fort के अंदर ग्यारह जैन मंदिर हैं जो जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं।

Gwalior Fort History In Hindi - ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में
Gwalior Fort History In Hindi – ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में

इसके दक्षिणी ओर तीर्थंकरों की नक्काशी के साथ चट्टान से काटे गए 21 मंदिर हैं। इन मंदिरों में टालस्ट आइडल, ऋषभनाथ या आदिनाथ की छवि है, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है, यह मंदिर 58 फीट 4 इंच (17.78 मीटर) ऊँचा है

  • उर्वशी मंदिर :

उर्वशी किले में एक मंदिर है जिसमें विभिन्न मुद्राओं में बैठे तीर्थंकरों की कई मूर्तियाँ हैं। पद्मासन की मुद्रा में जैन तीर्थंकरों की 24 मूर्तियाँ विराजमान हैं।

40 मूर्तियों का एक और समूह कैयोट्सार्गा की स्थिति में बैठा है। दीवारों में खुदी हुई मूर्तियों की संख्या 840 है। उर्वशी मंदिर की सबसे बड़ी मूर्ति उर्वशी गेट के बाहर है जो 58 फीट 4 इंच ऊंची है और इसके अलावा पत्थर-की बावड़ी (पत्थर की टंकी) में पद्मासन में 35 फीट ऊंची मूर्ति है।

  • गोपाचल पर्वत ग्वालियर :

Gwalior Fort का प्रसिद्ध किला भी इसी पर्वत पर स्थित है। गोपाचल पर्वत पर लगभग 1500 मूर्तियाँ हैं इनमे 6 इंच से लेकर 57 फीट की ऊँचाई तक के आकर की मूर्ति है।

इन सभी मूर्तियों का निर्माण पहाड़ी चट्टानों को काटकर किया गया है, ये सभी मूर्ति देखने में बहुत ही कलात्मक हैं। इनमे से ज्यादातर मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश के राजा डूंगर सिंह और कीर्ति सिंह (1341-1479) के काल में हुआ था।

यहां पर एक भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में बहुत ही सुंदर और चमत्कारी मूर्ति है, जिसकी ऊँचाई 42 फीट और चौड़ाई 30 फीट है।

Gwalior Fort History In Hindi - ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में
Gwalior Fort History In Hindi – ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में

ऐसा बताया जाता है की 1527 में मुगल सम्राट बाबर ने किले पर कब्जा करने के बाद अपने सैनिकों को मूर्तियों को तोड़ने का आदेश दिया, लेकिन जैसे ही

उसके सैनिकों ने अंगूठे पर प्रहार किया तो एक ऐसा चमत्कार हुआ जिसने आक्रमणकारियों को भागने के लिए मजबूर कर दिया। मुगलों के काल जिन मूर्तियों तोड़ दिया गया था, उन मूर्तियों के टूटे हुए टुकड़े यहाँ और किले में फैले हुए हैं।

  • ग्वालियर किले में तेली का मंदिर :

तेली का मंदिर का निर्माण प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने करवाया था। यह तेली का मंदिर एक हिंदू मंदिर है। यह मन्दिर विष्णु, शिव और मातृका को समर्पित किया गया है।

इस मंदिर को प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने बनवाया था। यह किले का सबसे पुराना भाग है इसमें दक्षिण और उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली का मिश्रण है।

इसकी आयताकार संरचना के अंदर स्तंभ है जिसमें बिना खंभे वाला मंडप और शीर्ष पर दक्षिण भारतीय बैरल-वॉल्टेड छत है। इसमें उत्तर भारतीय शैली में एक चिनाई वाली मीनार है,

इस मीनार की ऊँचाई 25 मीटर (82 फीट) है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों को रखा गया था। बता दें कि तेली का मंदिर को तेल के आदमी का मंदिर भी कहा जाता है।

यह मंदिर पहले भगवन बिष्णु का मंदिर था जो कि बाद में भगवन शिव का मंदिर बन गया। इस मंदिर के अंदर देवी, साँपों, प्रेमी जोड़े और मनुष्य की मूर्तियाँ है।

यह मंदिर पहले विष्णु का मदिर था लेकिन मुस्लिम आक्रमण के समय इसे नष्ट कर दिया गया था। बाद में इसे शिव मंदिर के रूप में फिर से बनाया गया।

  • गरुड़ स्तंभ :

गरूड़ स्मारक, तेली का मंदिर मंदिर करीब है। यह स्मारक भगवन विष्णु को समर्पित है जो किले में सबसे ऊंचा है। इस स्तंभ में मुस्लिम और भारतीय दोनों ही वास्तुकला का मिश्रण है। तेली शब्द की उत्पत्ति हिंदू शब्द ताली से हुई है। यह पूजा के समय इस्तेमाल की जाने वाली घंटी है।

  • सहस्त्र बाहु मंदिर :

सास-बहू मंदिर कच्छपघाट वंश द्वारा 1092-93 में बनाया गया था। यह मंदिर विष्णु को समर्पित है। इसका आकार पिरामिड नुमा है, जो लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है।

  • दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ग्वालियर

यह सिखों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण जगह है। दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा, गुरु हरगोबिंद सिंह की याद में वर्ष 1970 में बनाया गया था।

गुरुद्वारा दाता बांदी छोर का निर्माण उस जगह पर किया गया था जहां सिखों 6 वें गुरु हरगोबिंद साहिब को गिरफ्तार किया गया था और 1609 में मुगल सम्राट जहांगीर ने 14 साल की उम्र में उनके पिता, 5 वें सिख गुरु अर्जन पर जुर्माना लगाया था

जिसका भुगतान सिखों और गुरु हरगोबिंद द्वारा किया गया था। जहाँगीर ने गुरु गोबिंद साहिब को दो साल तक कैद में रखा था।

जब उन्हें कैद से मुक्त किया गया था तो उन्होंने अपने साथ बंधी बने 52 कैदियों को छोड़ने की प्रार्थना की। यह 52 कैदी हिन्दू राजा थे। जहाँगीर ने आदेश किया कि जो भी राजा गुरु का जामा पहनेगा उसे छोड़ दिया जायेगा। इसके बाद गुरु का नाम दाता बांदी छोर पड़ गया।

  • मान मंदिर महल ग्वालियर :

मान मंदिर की कलात्मकता और कहानी यहाँ आने वाले पर्यटकों को बेहद लुभाती है। मान मंदिर महल तोमर वंश के राजा महाराजा मान सिंह ने 15 वीं शताब्दी में अपनी प्रिय रानी मृगनयनी के लिए बनवाया था।

इसके बाद यह दिल्ली सल्तनत, राजपूतों, मुग़ल, मराठा, ब्रिटिश और सिंधिया के काल से होकर गुजरा है। यह मंदिर को एक प्रिंटेड पैलेस रूप में जाना जाता है क्योंकि मान मंदिर पैलेस स्टाइलिश टाइलों के उपयोग किया गया है।

इस मंदिर को पेटेंट हाउस भी कहा जाता है क्योंकि इनमे फूलो पत्तियों मनुष्यों और जानवरों के चित्र बने हुए हैं। जब आप इस महल के अंदर जायेगे तो

आपको एक यहाँ आपको एक गोल काराग्रह मिलेगा, इस जगह औरंगजेब ने अपने भाई मुराद की हत्या की थी। इस महल में एक तालाब भी है जिसका नाम जौहर कुंड है। यहां पर राजपूतो के पत्नियां सती होती थी।

  • जौहर कुण्ड ग्वालियर :

जौहर कुंड मान महल मंदिर के अंदर उपस्थित है। इस कुंड को लेकर एक अलग ही कहानी सामने आती है जो आपको इसके बारे और भी जानने के लिए मजबूर कर देगी बता दें कि जौहर का अर्थ होता है

आत्महत्या। जौहर कुंड वो जगह है जहाँ पर इल्तुतमिश के आक्रमण के समय राजपूतों की पत्नियों ने अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी। जब 1232 में Gwalior Fort के राजा हार गए थे तो बहुत बड़ी संख्या में रानियों ने जौहर कुंड में अपने प्राण दे दिए थे।

  • हाथी पोल :

हाथी पोल गेट किले के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इस गेट को राव रतन सिंह ने बनवाया था। यह गेट मैन मंदिर महल की ओर जाता है। यह सात द्वारों की श्रृंखला का आखिरी द्वारा है। इसका नाम हाथी पोल गेट इसलिए रखा गया है कि इसमें दो हाथी बिगुल बजाते हुए एक मेहराब बनाते हैं। यह गेट देखने में बेहद आकर्षक लगता है।

  • कर्ण महल :

कर्ण महल, Gwalior Fort का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है। तोमर वंश के दूसरे राजा कीर्ति सिंह ने कर्ण महल का निर्माण करवाया था। राजा कीर्ति सिंह को कर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस महल का नाम कर्ण महल रखा गया।

  • विक्रम महल :

विक्रम महल को विक्रम मंदिर के नाम से भी जाना-जाता है क्योंकि महाराजा मानसिंह के बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह ने इस मंदिर को बनवाया था। विक्रमादित्य सिंह, शिव जी का भक्त था। मुगल काल समय इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन बाद इसके विक्रम महल के सामने खुली जगह में फिर से स्थापित किया गया है।

  • भीमसिंह राणा की छत्री :

इस छत्री को गुबंद के आकर में गोहद राज्य के शासक भीम सिंह राणा (1707-1756) के स्मारक के रूप में बनाया गया था। इसका निर्माण उनके उत्तराधिकारी छत्र सिंह ने बनवाया था।

बता दें कि जब मुगल सतप, अली खान ने आत्मसमर्पण किया था तो 1740 में भीम सिंह ने Gwalior Fort पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1754 में भीम सिंह ने किले में एक स्मारक के रूप में भीमताल (एक झील) का निर्माण किया। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी छत्र सिंह ने भीमताल के पास स्मारक छतरी का निर्माण कराया।

ग्वालियर किले की कुछ रोचक तथ्य –

मध्य प्रदेश में Gwalior Fort जिले में स्थित यह किला 2 भागों में बंटा हुआ है। पहला भाग है गुजरी महल और दूसरा मन मंदिर।

किले के पहले भाग गुजरी महल को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गाया था।

मन मंदिर में ही “शून्य” से जुड़े हुए सबसे पुराने दस्तावेज किले के ऊपर जाने वाले रास्ते के मंदिर में मिले थे, जो लगभग 1500 साल पुराने थे।

इस किले को मुगल शासनकाल के दौरान एक जेल के रूप में इस्तेमाल किया गया था। किला शाही लोगों के लिए राजनीतिक जेल था।

देश के इतिहास में इस क़िले का बहुत महत्व रहा है। ग्वालियर क़िले को ‘हिन्द के क़िलों का मोती’ भी कहा जाता है।

इस किले का निर्माण लाल बलुए पत्थर से किया गया था, जोकि शहर की हर दिशा से दिखाई देता है।

8वीं शताब्दी में निर्मित इस किले की ऊंचाई तीन वर्ग किलोमीटर से अधिक फैली हुई है और इसकी ऊंचाई 35 फीट है।

इसकी दीवारें पहाड़ के किनारों से बनाई गई है एवं इसे 6 मीनारों से जोड़ा गया हैं। इसमें दो दरवाज़े हैं एक उत्तर-पूर्व में और दूसरा दक्षिण-पश्चिम में।

किले में अन्दर जाने के लिए दो रास्ते हैं: पहला Gwalior Fort गेट, जिस पर केवल पैदल ही जाया जा सकता है, जबकि दूसरा रास्ता ऊरवाई गेट है, जिस पर आप गाड़ी के द्वारा भी जा सकते हैं।

किले का मुख्य प्रवेश द्वार को हाथी पुल के नाम से भी जाना जाता है, जो सीधा मान मंदिर महल की ओर ले जाता है एवं दूसरे द्वार का नाम बदालगढ़ द्वार है।

Gwalior Fort History In Hindi - ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में
Gwalior Fort History In Hindi – ग्वालियर किला इतिहास हिंदी में

किले में कई ऐतिहासिक स्मारक, बुद्ध और जैन मंदिर, महल (गुजारी महल, मानसिंह महल, जहांगीर महल, करण महल, शाहजहां महल) मौजूद हैं।

इस किले में भीतर स्थित गुजारी महल को अब पुरातात्विक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। जिसमें इतिहास से सम्बंधित दुर्लभ मूर्तियां रखी गई हैं, ये मूर्तियां यहीं के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं।

किले में अन्दर आप तेली का मंदिर, 10वीं सदी में बना सहस्त्रबाहु मंदिर, भीम सिंह की छतरी और सिंधिया स्कूल आदि भी देखने का आनंद उठा सकते हैं।

कोहिनूर हीरा, जोकि वर्तमान में ब्रिटेन में पाया जाता है, इस हीरे का अंतिम संरक्षक Gwalior Fort का राजा था। यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था।

एक तामचीनी वृक्ष किले के परिसर के अंदर खड़ा है, जिसे अपने समय के महान संगीतकार तानसेन द्वारा लगाया गया था।

ग्वालियर किले यात्रा का सबसे अच्छा समय – gwalior fort timings

अगर आप gwalior ka kila घूमना चाहते है तो आप यहाँ किसी भी मौसम में आ सकते हैं, क्योंकि यह किला पूरे साल पर्यटकों के लिए खुला रहता है।

अगर मौसम के हिसाब से देखा जाए तो आप दिसंबर से लेकर फरवरी या मार्च तक यहां आ सकते हैं। इन महीनो में यहां सर्दियों का मौसम होता है।

इस मौसम में Gwalior Fort की सैर करना आपके लिए बेहद यादगार साबित हो सकता है। अप्रैल-मई में यहां गर्मियों का मौसम होता है, जिसके दौरान तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या इससे भी अधिक हो जाता है।

जुलाई से अक्टूबर तक यहां बारिश होती है क्योंकि यह मध्य भारत के मानसून का मौसम है। यहां ज्यादातर पर्यटक अक्टूबर से मार्च तक आते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम इन्ही महीनो में होता है।

ग्वालियर किला कैसे पहुंचे –

gwalior ka kila मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में है। यहाँ पर आप हवाई जहाज, ट्रेन और बस तीनो तरीके से पहुंच सकते हैं, जिसकी जानकारी हम आपको बताने जा रहे हैं।

ग्वालियर किले हवाई जहाज से कैसे पहुंचे –

ग्वालियर में हवाई अड्डा भी है जो शहर के बीच से सिर्फ 8 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से आपको कई स्थानीय टैक्सियाँ और बसें मिल जाती हैं।

अगर आपको हवाई अड्डे पर जाना है तो आप टैक्सियों और बसों की सहायता से पहुँच सकते हैं। ग्वालियर से आपको दिल्ली, आगरा, इंदौर, भोपाल, मुंबई, जयपुर और वाराणसी के लिए फ्लाइट मिल जाएगी।

ग्वालियर से लगभग 321 किमी दूर दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यह दूसरे देशो से ग्वालियर फोर्ट घूमने आने वाले यात्रियों के लिए सबसे अच्छा हवाई अड्डा है।

ग्वालियर किले ट्रेन से कैसे पहुंचे –

Gwalior Fort दिल्ली-चेन्नई और दिल्ली-मुंबई रेल लाइन का एक प्रमुख रेल जंक्शन है। यहाँ पर भारत के लगभग सभी महत्वपूर्ण शहरों और पर्यटन स्थलों से ट्रेन आती है।

दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत से आने वाली ट्रेनें ग्वालियर शहर से होकर गुजरती और रूकती भी हैं।

जो भी लोग gwalior kila घूमने का प्लान बना रहे हैं उन्हें दिल्ली, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, जयपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, भरतपुर, मुंबई, जबलपुर, इंदौर, बैंगलोर, हैदराबाद, चेन्नई, नागपुर, भोपाल, आदि से सीधी ट्रेन मिल जाएगी।

सड़क मार्ग से ग्वालियर किला कैसे पहुंचे –

आगरा के पास का एक मुख्य पर्यटक स्थल होने के वजह से Gwalior Fort की सड़क परिवहन बहुत अच्छी है। यहाँ की सड़कें काफी अच्छी है,जो आपको एक उत्तम और एक आरामदायक यात्रा का अनुभव कराएगी।

Gwalior Fort के लिए आपको निजी डीलक्स बस और राज्य की सरकारी बसों दोनों की सुविधा मिल जाएगी। Gwalior Fort के पास कुछ खास पर्यटन स्थल हैं

जहाँ से आपको यहाँ के लिए डायरेक्ट बस मिल सकती है। इन पर्यटन स्थलों के नाम है नई दिल्ली (321 किलोमीटर), दतिया (75 किलोमीटर), आगरा (120 किलोमीटर), चंबल अभयारण्य (150 किलोमीटर), शिवपुरी (120 किलोमीटर), ओरछा (150 किमी) जैसे सड़क मार्ग से आसानी से जा सकते हैं),

इंदौर 486 किलोमीटर) और जयपुर (350 किलोमीटर)। पर्यटन स्थान होने के साथ ही Gwalior Fort एक मुख्य प्रशासनिक और सैन्य केंद्र भी है, इसलिए यह यहाँ के आस-पास के शहरों और गांव से सड़क के माध्यम से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

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Author by Mehul Thakor