Asirgarh Fort History In Hindi

Asirgarh Fort History In Hindi Madhya Pradesh | असीरगढ़ किला का रहस्य

रहस्यों से भरा मध्य प्रदेश का Asirgarh Fort बुरहानपुर जिले में एक छोटासा गांव मौजूद है। असीरगढ का किला एक ऐतिहासिक क़िला है। बहुत आकर्षक और सुन्दर है। 

प्राचीन मान्यता के मतानुसार आशा अहीर नाम का एक यह जगह रहता था। उनके पास हजारों की संख्या में पशु थे। और उन्होंने अपने पशुओ की सुरक्षा के लिए आशा अहीर ने चूना-पत्थरों, ईंट गारा – मिट्टी से दीवारें बनाई और उन्होंने यह स्थान का नाम असीरगढ़ नाम दिया था। बुरहानपुर जिले तक़रीबन 20 कि.मी दूर और उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के टोच पर समुद्र से 250 फ़ुट ऊँचाई पर असीरगढ़ क़िला स्थित है। Asirgarh Fort Madhya Pradesh के बुरहानपुर जिले से लगभग 20 कि.मी की दुरी पर से उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 250 फ़ुट की ऊँचाई पर मौजूद है। अगर आप भी इस असीरगढ़ क़िला की जानकरी पाना चाहते है तो हमारे इस लेख को पूरा पढियेगा जरूर। 

Table of Contents

Asirgarh Fort History In Hindi Madhya Pradesh –

  किले का नाम   असीरगढ़ किला
  नियंत्रण-कर्ता   मध्य प्रदेश सरकार
  निर्माणकाल   चौदहवीं सदी
  स्थापक   राजा आशा अहीर,
  सामान   बलुआ पत्थर और सूर्खी-चूना

असीरगढ़ किले का इतिहास –

वह किला आज भी इतिहासकारों ने उसका ‘बाब-ए-दक्खन’ (दक्षिण द्वार) और ‘कलोद-ए-दक्खन’ (दक्षिण की कुँजी) के नाम से पर्सिद है, कहा कहा जाता है की इस क़िले पर विजय प्राप्त करने के पश्चात दक्षिण का द्वार खुल जाता था, और विजेता का सम्पूर्ण ख़ानदेश क्षेत्र पर कब्ज़ा हो जाता था। कहा जाता है की वह इस क़िले का निर्माण कब और किसने की यह आज भी इतिहासकारों में नहीं कहा जा सकता।

कहा जाता है की इस क़िले का रहस्य महाभारत के वीर योद्धा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की अमरत्व की गाथा से संबंधित करते हुए उनकी पूजा स्थली बताते हैं। बुरहानपुर के ‘गुप्तेश्वर महादेव मंदिर’ के समीप से एक आकरषक सुरंग है,वह असीरगढ़ तक लंबी है। लोगो का मानना है की पर्वों के दिन अश्वत्थामा ताप्ती नदी में स्नान करने आते हैं, और फिर में ‘गुप्तेश्वर’ की पूजा करा के वह बादमे वो अपने स्थान पर लौट जाते हैं।

Asirgarh Fort History In Hindi Madhya Pradesh
Asirgarh Fort History In Hindi Madhya Pradesh

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असीरगढ़ किला का रहस्य – 

आकर्षित इतिहासकार ‘मोहम्मद कासिम’ के कथनानुसार इसका ‘आशा अहीर’ नामक एक व्यक्ति ने स्थापना करया था। आशा अहीर’ नामक एक व्यक्ति के पास हज़ारों की संख्या में पशु थे। उनका रक्षण करने के लिए किले की स्थापना की थी। वह इस स्थान पर पंद्रहवीं शताब्दी में आया था। और इस की स्थापना ईट मिट्टी, चूना और पत्थरों की दीवार को खड़ी करके रहने लगा।

किला असीरगढ़ नाम से प्रसिद्ध है। किले पर चौहान वंश के राजाओं ने कुश समय शासन किया था। इतिहासकारों का कहना है की उसका उल्लेख राजपूताना के संदर्भ में मौजूद हैं। कुछ समय पश्चात असीरगढ़ क़िले दूर – दूर तक प्रख्यात हो गया। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के एक सिपाही मलिक ख़ाँ के पुत्र नसीर ख़ाँ फ़ारूक़ी को असीरगढ़ की प्रसिद्धि ने प्रभावित किया। फिर वह मध्यप्रदेश के asirgarh fort burhanpur में स्थापित हुए। 

फ़िरोज़शाह तुग़लक़ –

उन्होंने आशा अहीर से विनंती की की मेरे भाई और बलकाना के ज़मीदार मुझे को जान का खतरा है, एवं मेरी जान के दुश्मन बने हुए हैं। आशा अहीर उदार व्यक्ति था, उसने नसीर ख़ाँ की बात पर विश्वास करके उसे क़िले में रहने की अनुमति दी। नसीर ख़ाँ ने पहले तो कुछ डोलियों में महिलाओं और बच्चों को भिजवाया और कुछ में हथियारों से सुसज्जित सिपाही योद्धाओं को भेजा।

आशा अहीर और उसके पुत्र स्वागत के लिए मौजूद थे। उसी के दौरान जैसे डोलियों किले में आई एकदम आशा अहीर और उसके पुत्रों पर हमला किया गया। और उन्हें ख़तम कर के नसीर ख़ाँ फ़ारूक़ी ने किले पर कब्ज़ा कर लिया । आदिलशाह फ़ारूक़ी के मौत के बाद में असीरगढ़ का क़िला बहादुरशाह के कब्ज़ा में हो गया। वह दूर दृष्टि वाला बादशाह नहीं था। वाला बादशाह ने उनकी और क़िले की सुरक्षा के लिए कोई निर्माण नहीं की थी।

Images for asirgarh fort
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Asirgarh Fort का निर्माण – 

असीरगढ़ किले में जाने के दो मार्ग की रचना की थी। इस में से एक रास्ता पूर्व दिशा में जाता है वह सरल सीढ़ीदार रास्ता है, और दूसरा रास्ता उत्तर दिशा में जाता है वो बहुत कठिन एवं कष्टदायक है। यह रास्ता वाहनों के लिए है। वाहन की सुरक्षा के लिए दोनों बाजु दीवार कड़ी की गई है। वो रास्ता एक बड़ी खाई के पासख़तम हो जाता है। जहाँ एक बड़ा फाटक दिखता है, जो ‘मदार दरवाज़े’ के नाम से पहचाने जाता है।

वह किला इतनी ऊंचाई पर है की नीचे से कोई देखे तो हिम्मत हार जाता है क्युकी इतनी ऊँचाई पर चढना कठिन होगा, जैसे- जैसे हम किले तरफ जाते है, आस-पास का कुतरती सुन्दरता हृदय को मोहा लेता है। इन कुतरती सुन्दरता में क़िले पर पहोचने वाला यांत्रिक इतना खो जाता है, कि उसे इस बात का पता तक नहीं होता है, कि वह कितनी ऊँचाई पर पहुँच गये है।

असीरगढ़ किले की बनावट –

यह असीरगढ़ का नक्शा देखे तो क़िले की भूल-भुलैया वाले मार्ग देखकर प्रयटक भ्रमित हो जाता हैं। असीरगढ़ क़िले के इसआकर्षित रंग को देखते हुए जब आगे बड़ेतो, असीरगढ़ क़िले का पहला द्वार दिखाए जाता है। इस दरवाज़े से कुछ ही दुरी पर पूर्व दिशा में लम्बी-लम्बी घास में छुपे हुए गंगा-यमुना नाम के पानी के अलग-अलग दो जल स्रोत नजर आते हैं। 

वह जल शुद्ध और स्वादिस्ट जल है वह जल कहा से निकल ता है व किसीको पता नहीं है। जलमे मौजूद सीढ़ियाँ स्पष्ट दिखाए देती है। और आगे तक मार्ग भी दिखाए जाता है। आगे तक जाने के पर भय का महेसुस होता है। ऐसा होता है की अहा कोई गुप्त रास्ता किसी के किसी हिस्शा में मिलता अवश्य है।

Asirgarh fort photos
Asirgarh fort photos

Asirgarh Fort की संरचना – 

इस किले में एक काली चट्टान मौजूद है, जिसमे अकबर, दानियाल, औरंगज़ेब और शाहजहाँ के चार शिलालेख फ़ारसी भाषा में लिखा हुवा हैं।वह लेखोमे किले के क़िलेदरों पर विजय प्राप्त करने वालों और सूबेदारों के नाम के साथ लिखा गया है। शहाजहाँ के शिलालेख से पता चलता है। की उस दौरान कुछ ईमारतों का भी स्थापना की गए थी। इस चट्‌टान नजदीक में जो दरवाज़ा है, वह दरवाज़ा राजगोपालदास ने निर्माण करवाय था।

वह स्थान से आस-पास देखे तो सुंदर और आकर्षित दिखता है। असीरगढ़ किले की दीवारों और दरवाज़ों पर कुश अन्तर में छोटी तोपें राखी गए थी। किले के उपर के हिस्से में जाये तो बड़ा मैदान है, वह पर घास उगी हुई सामने दिखाईपड़ती है। किस दौरान वह खेती करवाई जाती थी। लेकिन वह पर अब बड़ा मैदान सूखा पड़ा है। आगे जाने पर असीरगढ़ की मस्जिद की दो मीनारें आकर्षित और साफ़ दिखाई देती हैं।

यह मस्जिद असीरगढ़ किले की जामा मस्जिद’ नाम से पहचानि जाती है। यह ‘जामा मस्जिद पुरे काले पत्थररोसे बनवाई गई है। यह आकर्षित जामा मस्जिद फ़ारूक़ी शासन काल शैली का अद्भुत कला का नमूना है। यह जामा मस्जिद’ asirgarh fort burhanpur के 5 साल पहले स्थापित की गई थी।

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असीरगढ़ किले के युद्ध –

सम्राट अकबर असीरगढ़ किले को अपने कब्ज़ा में करने के लिए व्याकुल हो रहा था। वो दक्षिण की ओर पलायन किया। जैसे ही बहादुरशाह फ़ारूक़ी को इस बात कीखबर हुवी, उसने अपनी सुरक्षा के लिए क़िले में ऐसी शक्तिशाली निर्माण किया की दस वर्षों तक क़िला घिरा रहने पर भी बाहर से किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं पड़ी। सम्राट अकबर ने असीरगढ़ पर आक्रमण कराना प्रारंभ कर दिया था, एवं क़िले के सारे रास्ते बंद कर दिये थे।

असीरगढ़ क़िले पर युद्ध के समय रात-दिन तोपों से हमला किया जाता था। इस समय नियमित प्रकार युद्ध होता रहा। परन्तु अकबर कब्जे में कर न सका ने असफलता का ही मुंह देखना पड़ा था। उन्होंने अपने सेनापति और मंत्रीयो का विचार-विमर्श मान लिया, फिर उन्होंने निर्णय लिया के बहादुरशाह से बातचीत की जाए। उन्होंने संदेशवाहक द्वारा संदेश भेजा गया। साथ ही यह विश्वास भी दिलाया गया कि बहादुरशाह पर किसी भी प्रकार की आँच नहीं आएगी।

बहादुरशाह ने सम्राट अकबर की बात पर विश्वास किया। बादमे उन्होंने भेंट ने के लिए क़िले के बाहर आया। बहादुरशाह फ़ारूक़ी ने सन्मान किया और बादमे वह बात शुरू हुई। बातचीत चल रही थी ने एक सिपाही ने पीछे से बहादुरशाह पर आक्रमण किया और उनसे जख्मी कर के कब्जेमें कर लिया। उसने अकबर से कहा “यह तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया” है।

Asirgarh fort images
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अकबर के राजनीतिक दांव-पेंच –

इस पर अकबर ने कहा कि “राजनीति में सब कुछ होता है।” फिर अकबर ने राजनीतिक दांव-पेंच और छल-कपट से क़िले के मंत्री और सैनिको को सोना, चाँदी, हीरे, मोतियों से खरीद लिया। इन लोभियों ने राजा के साथ छल-कपट कर के क़िले का द्वार खोल दिया। अकबर के सैनिको क़िले में jeetne ke liye पहोच गई। बहादुरशाह के सैनिको अकबर के सैनिको के सामने युद्ध कर न सके। इस दौरान देखते -देखते 17 जनवरी सन् 1601 ई. को असीरगढ़ के क़िले पर अकबर ने कब्जे में कर लिया। और इस किले पर मुग़ल शासन चलने लगा और ध्वज फहराने लगा। 

अकबर की सेना ने बहादुरशाह के पुत्रों को बंदी बना लिया। अकबर ने बहादुरशाह फ़ारूक़ी को ग्वालियर के क़िले में और उसके पुत्रों को अन्य क़िलों में रखने के लिए सोप दिया। जिस दौरान फ़ारूक़ी बादशाह ने इस क़िले को राजनीतिक चालों से, धूर्तता से कब्जेमें कर किया था, ठीक उसी प्रकार यह क़िला भी उनके कब्ज में जाता रहा था। इस प्रकार असीरगढ़ और बुरहानपुर पर मुग़लों का कब्जेमें होने के कारन फ़ारूक़ी वंश का पतन हो गया। “अकबर जैसे सम्राट बादशाह को भी असीरगढ़ क़िले को कब्जेमें करने के ‘सोने की चाबी’ का इस्तेमाल करना पडा था”।

मराठाओ का शासन –

अकबर के शासनकाल के समय यह क़िला सन् 1760 ई. से सन् 1819 ई. तक मराठों के कब्जेमें गया था। मराठों के पतन के समय वोहा क़िला अंग्रेज़ों के कब्जेमें हो गया। सन् 1904 ई. से यहाँ अंग्रेज़ी सैनिको मौजूद रहते थे। असीरगढ़ का क़िला तीन हिस्सोमे स्थित है। प्रथम ऊपर का भाग असीरगढ़, दूसरा मध्य भाग कमरगढ़ और त्रिसरा निचला भाग मलयगढ़ पहचाना जाता है।

असीरगढ़ किले की खुदाई में क्या निकला –

असीरगढ़ किले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहाँ खुदाई करने से यह किले मेसे कई अन्य इमारते मिली है। यह खुदाई में एक बड़ी जेल मिली इसमें बड़ी -बड़ी खिड़कीया ,दरवाजे मिले है। इसमें चार बैरक बनवाये गये है। इसके आलावा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में और भी कई स्मारक मिले है। यह खुदाई में एक रानी महल भी मिला है। इस रानी महल में 20 कमरे भी मौजूद है। पूरा रानी महल पूरा 100 बाय 100 का बना हुवा है। यह रानी महल ईंटो की जुडाई से निर्माण किया गया है। यह रानी महल 20 फिट की गहराई तक निर्माणित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यह महल की सफाई करवाई गई है। यह किला सुन्दर ,आकर्षित और पूरा रहस्योंसे भरा है।

असीरगढ़ किले की तस्वीरें
असीरगढ़ किले की तस्वीरें

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असीरगढ़ किले में स्थित जलाशय का रहस्य – 

यह असीरगढ़ किले में एक ऐसा जलाशय है कहा जाता है।

की जिस जलाशय का पानी कभी ख़तम यानि की कभी सूखता नहीं है।

लोगो का मानना है की भगवान कृष्ण के श्राप के कारण

अश्वत्थामा स्नान करने के बाद नजदीकी में स्थित शिव के मंदिर में पूजा करने के लिए आते है।

असीरगढ़ किला प्रेतवाधित –

असीरगढ़ फोर्ट अश्वत्थामा किला मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में एक छोटासा गांव मौजूद है। वह उसके अंदर एक गहरा रहस्य छुपा है। असीरगढ़ का किला महाभारत काल समय का है। वह किला खांडव गांव में स्थापित है। महाभारत काल के दौरान खांडव वन के नाम से पहेचान जाता था। वहा स्थापित शिव मंदिर महाभारत से आज भी सम्बंधित हैं। किला देखने में बहुत ही खूबसूरत है, मगर वहा जाने का बहुत ही कठिन भी है। असीरगढ़ किला पहोचना कठिन है, फिरभी यात्रिक गुमने का पसंद करते है।

कुछ रहस्य की बाते बताये तो हररोज इस मंदिर के शिवलिंग में गुलाब का एक फूल और रोली पाई मिलती है। महाभारत काल से जुड़ा हुवा है। हमारे देश में कहा जाता है की किए ऐसे रहस्यमई जगहों में asirgarh ka kila भी मौजूद है। वह महा भारत के चरित्रों में अश्वत्थामा आज भी वहां वजूद है। पिता की मृत्यु का बदला लेने के निकले हुवे अश्वत्थामा को उनकी एक चूक कठिन पड़ी थी। उस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें श्राप था की तुम युगों-युगों तक भटकने रहोगे। वह रहने वाले यक्ति यो का मानना है।

अश्वथामा का रहस्य – 

Ashwathama history in hindi बताये तो asirgarh fort ashwathama कुछ करीबन पांच हजार वर्षों से गुम रहे है। मध्यप्रदेश के asirgarh fort burhanpur जिले में एक छोटासा गांव मौजूद है। असीरगढ का किला के लिए लोगो का मानना है की गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में अश्वत्थामा अमावस्या व पूर्णिमा तिथियों पर शिव की पूजा करने के लिए आते हैं। वोह आज भी वह पूजा करने के लिए आते है। वहकि साबित तो नहीं किम गए परन्तु कुछ बाते स्वतः झलकती हैं वह वोही हो सकते हैं। अश्वत्थामा का जन्म द्वापरयुग में हुवा था। अश्वत्थामा की गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी।

Ashwathama ki kahani hindi देखे तो अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। वह कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भानजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या में निपुण बनाया था। महाभारत के युद्ध के दौरान गुरु द्रोण ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। अश्वत्थामा भी अपने पिता की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के समय पांडवों की सेना को तबा कर दिया था। कहा जाता है की अश्वत्थामा पिछले 5000 साल से अश्वत्थामा असीरगढ़ किला में रोज अमावस की रात शिव जी की पूजा करने आते हैं।

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Asirgarh Fort के आसपास घूमने के स्थल –

असीरगढ़ किला
असीरगढ़ किला

कुण्डी भंडारा :

आप सोचते होंगे की asirgarh kila ही अकेला गुमने के लिए होगा परन्तु वह अनेक जगा गुमने की जगा है वह हम बतायेगे की कुण्डी भंडारा भी देखने की जगा है। वह एक अनोखा जल प्रबंधन भी मौजूद है। कुण्डी भंडारा पानी थोड़ा लाल होने के कारन उसे दूसरे खुनी भंडारा से नाम से पहेचाना जाता है। वह जमीन के निचे 80 फिट होनेके कारन वह आप लिफ्ट से पहोच सकते है। वह कुण्डी भंडारा 400 साल पुराण है उसका निर्माण अकबर के नौ रत्नों में शामिल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने करवाया था।

वह सतपुड़ा की तलहटी में करीब 90 फीट गहराई में मौजूद है। उसमे 103 कुंडियां भी मौजूद है। वर्ष 1615 में बनी इस जल संरचना को कुंडी भंडारा के नाम से पहेचाना जाता है। उसका जल शहर में लालबाग क्षेत्र के 40 हजार से बहोत लोग कुंडी भंडारा का पानी पी रहे हैं। Asirgarh fort story in hindi देखे तो शहर ताप्ती और उतावली नदी के किनारे पर बसा है। इस कुंडा में फिरने के लिए लोहे की सिडिया है।

Asirgarh Fort का शाही किला :

बुरहानपुर शाही किला वह एक जीवंत किला है। वह किला तापी नदी के किनारे पूर्व दिशामे मौजूदा है। शाही किला का निर्माण फारूकी शासकों द्वारा करवाया गया था। और शाहजहाँ के दौरान बसाया गया था। शाहजहाँ ने इस शहर में ज्यादा वक्त गुजरा और शाही किला को जोड़ने में मदद की। दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास किला की छत पर निर्माण किया गया था। शाही किले में प्रमुख आकर्षण हमाम या शाही स्नान है। इस किला का निर्माण शाहजहाँ की पत्नी, बेगम मुमताज़ महल के लिए किया गया था। ताकि वह ख़ुश, केसर और गुलाब की पंखुड़ियों के साथ सुगंधित पानी में एक शानदार स्नान का मजा ले सके।

ताप्ती घाट :

गंगा नदी से भी वह नदी प्राचीन है। इस नदी को दूसरे सूर्यपुत्री से भी पहेचाना जाता है।

बुरहानपुर से बसती नदी के किनारे गबिरंगे शिव मंदिर हैं।

वह मंदिर अलग – अलग बने हुवे है।

तापी नदी के ज्यादा बरिस होने के कारन वह के घाट सभी डूब जाते है। 

इस में एक और भी अत्यंत अनोखी वस्तु है।

वह है नदी के मध्यमे मौजूद एक हाथी की बड़ी पाषाणी मूर्ति।

ताप्ती नदी के राज घाट पर दरेक ताप्ती देवी की आरती की जाती है।

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जामा मस्जिद :

जामा मस्जिद व्यस्त बाजार के बीचमे मौजूद वह एक बड़ी मस्जिद है।

वह मस्जिद में काले पत्थर से दो बड़े मीनारें हैं।

इसका एक अनोखापन जो मुझे दिखाया गया था।

उत्कीर्णित आलों के एक ओर संस्कृत में लिखे शिलालेख।

1000 बड़ी इमारतों की एक लम्बी कतार भी वहाँ मौजूद है।

जब आप यात्रा करने के लिए ये तो आप मौलवी से इन्हें देखने का आग्रह जरूर करें।

असीरगढ़ किला का रहस्य
असीरगढ़ किला का रहस्य

काला ताज महल :

वह मकबरा काला ताज महल के नाम से प्रख्यात है। उसका निर्माण आगरा के ताज महल से जुड़ता भी यह भिन्न है। यह अपेक्षाकृत छोटा स्मारक स्थानीय काली शिलाओं से निर्मित है। मकबरे के नजिक भित्तिचित्र भी काले रंग में किये गए हैं। ऐसा विचित्र दृश्य मैंने इससे पूर्व कहीं नहीं देखा था। काला ताजमहल में शाहनवाज खान का मकबरा मौजूद है। वह शाहनवाज खान अब्दुल रहीम खानखाना का बड़ा पुत्र था।

उनकी देखा रेखा बुरहानपुर में ही हुई और उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें मुगल फौज का सेनापति बनाया गया।उनकी 44 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी। उनको बुरहानपुर में उतावली नदी के किनारे दफनाया था। कुछ दिनोंके बाद उन्होनी पत्नी का भी मृत्यु हो गया। और उन्हें भी बुरहानपुर में उतावली नदी के किनारे दफनाया था। इस के दौरान के बाद वह शाहनवाज खान का मकबरा निर्माण था। इसे काला ताजमहल के नाम से पहचाने जाता है।

राजा जयसिंह छत्री :

बुरहानपुर शहर से थोड़ी दूरी पर तापी नदी एवं मोहना नदी का संगम है।

यहाँ पर मैंने एक अकेली बनावट देखी। यह राजा जयसिंह की छत्री अथवा स्मारक है।

इस इकलौते मंडप में 32 स्तंभ एवं 5 गुम्बद हैं।

रेणुका देवी मंदिर :

रेणुका देवी का मंदिर की स्थापना राजा यादव ने 800-900 साल पहले करवाया था। रेणुकादेवी का मंदिर नाहन में स्थापित है। वह asirgarh fort burhanpur के चारो और तीन देवी-मंदिर हैं आशादेवी मंदिर जो असीरगढ़ के पास मौजूद है। इच्छापुरी देवी मंदिर और रेणुका देवी मंदिर स्थित है। यह मन्दिरो मे से रेणुका देवी मंदिर बुरहानपुर के नजदीक है। इस मंदिर का रंग केसरिया था। यह मंदिर का दीप स्तंभ विशाल, सुन्दर और आकर्षित है। रेणुका देवी ऋषि परशुराम की माँ थीं।

लोगो का कहाँ है की अपने पिता के आदेश के पालन में उन्हें उनके बेटे ने ही खत्म कर दिया। 19 वी सदी के समय इस मंदिर एक रातमे खड़ा किया गया था। वह जगा पर नवंबर के महीने में मेला का सुभाराम होता है। इस मेले में संगीत, बाजार, प्रदर्शनियों, नृत्य प्रदर्शन अनेक लोग मौजूद रहते है। वह के लोगों का कहना है की इस जगा पर एक साथ में छह देविया प्रगट हुवी थी। उसी के लिए वह गांव को छैगांवदेवी नाम से जाना जाता है।

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Asirgarh Fort की दरगाह-ए-हकीमी :

वह जगा सुन्दर देखने लायक और आकर्षित स्थान है।

श्वेत रंग के मकबरों पर चांदी के नक्काशे हुए द्वार हैं।

वह जगा पर चारो दिशाओं में सुन्दर बगीचे तो है। लेकिन वह इनका रखरखाव भी सुन्दर है।

रस्म के अंतर्गत दर्शनार्थी वह दरगाह में घोड़ागाड़ी अथवा तांगे पर बैठकर आते हैं।

अतः आप को दरगाह के बाहर बाजार में कई रंगबिरंगे तांगे दिखाई देंगे।

असीरगढ किला का प्रवेश शुल्क – 

असीरगढ़ किले का प्रवेश निशुल्क है। कोई यात्रिको को वह गुमने फिरने का कोई शुल्क अदा नहीं करना होता है।

Asirgarh Fort History In Hindi
Asirgarh Fort History In Hindi

असीरगढ किले की यात्रा के लिए टिप्स –

असीरगढ का किला फिरना इतना खूबसूरत है।

इतना पहोचना भी उतना कठिन है। कुय्की असीरगढ किले में जानेका रास्ता बेहद दुर्गम है। 

परन्तु यात्रिको वह गुमने का पसंद करते है।

क्योकि उसका कारन एक इस किले में रहस्य जुड़ा है।

असीरगढ़ किले घूमने जाने का अच्छा समय –

असीरगढ़ किले को दुगना खूबसूरत देखना चाहते है।

तो आप मानसून की बारिशो के समय में समय में यह असीरगढ़ किले घूमने जा सकते है।

मानसून में यह किला बहोत खूबसूरत दिखाई देता है।

Asirgarh Fort के आसपास की रुकने की होटल – 

असीरगढ़ किले के नजदीक ही आपको रुकने के लिए होटल मिल जायेगी।

होटलो के नाम आपको निचे दिये गए है आप यह जान सकते है।

होटल भव्य शिवम बुरहानपुर :

यह होटल आपको रेलवे स्टेशन रोड , माँ तुलसी मॉल, के नजदीक बुरहानपुर में मिल जाएगी।

वास्तुशिल्पी अतिथि गृह :

यह होटल 3-सितारा होटल 38, बालाजी नगर, अमरावती रोड, गेस्ट हाउस के पीछे मिल जाएगी।

होटल सिटी प्लाजा :

यह होटल ट्रैफिक पुलिस स्टेशन के पीछे, ओ.पी. दूरदर्शन केंद्र जयस्तंभ चौराहा में मिल जाएगी।

होटल ताप्ती रिट्रीट बुरहानपुर :

इचापुर रोड, एक्सिस बैंक के सामने, संजय नगर, बुरहानपुर, में मिल जाएगी।

Asirgarh Fort History In Hindi Madhya Pradesh
Asirgarh Fort History In Hindi Madhya Pradesh

Asirgarh Fort तक कैसे पहुंचे – 

Asigarh fort बुरहानपु शहर का एक अच्छा स्थान है।

बुरहानपुर शहर से लगभग 20 कि.मी की दूर मौजूद है।

यहां से किले तक जाने के लिए आप बुरहानपुर शहर से कैब

ऑटो किराये पर लेके किले तक पहुँच सकते हैं।

फ्लाइट से Asirgarh Fort तक कैसे पहुंचे :

वह सबसे पास मे इंदौर एयरपोर्ट है। वह करीबन 180 किमी दूर है।

एयरपोर्ट भारत के प्रमुख शहर दिल्ली और मुंबई शहरो से बहुत अच्छी तरह से मिलता हैं।

आप एयरपोर्ट पर पहुंच जाते हैं तो यहां से आप

अजमेर जाने के लिए के लिए एक टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।

ट्रेन से असीरगढ़ किला कैसे पहुंचे :

आप बुरहानपुर जाने के लिए रेल मार्ग का चुनाव किया हैं।

तो हम बता दें कि बुरहानपुर शहर का रेल्वे स्टेशन “बुरहानपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन” हैं।

जोकि मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर और दिल्ली लाइन पर मौजूद है।

स्टेशन दिल्ली, मुंबई, जयपुर, इलाहाबाद, लखनऊ और कोलकाता जैसे मुख्य शहरों से मिलता हैं।

जिसकी मदद से आप asirgarh kila तक सररतासे पहुंच सकते हैं।

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सड़क मार्ग से असीरगढ़ किला कैसे पहुंचे :

बुरहानपुर से करीबन 20 किमी की दुरी पर स्थित है।

यह असीरगढ़ keele तक पहुँच ने के लिये सड़क मार्ग से यानि कि

आप बस से या फिर टैक्सी या फिर कैब ध्वारा असीरगढ़ तक पहुँच सकते है।

Asirgarh Fort Madhya Pradesh Map –

Asirgarh Fort Video –

FAQ –

1. असीरगढ़ किला कहा स्थित है ?

असीरगढ़ का किला मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में एक छोटासा गांव मौजूद है।

उसकी उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर असीरगढ़ किला स्थित है। 

2. असीरगढ़ किला किसने बनवाया था ?

असीरगढ़ किले का निर्माण राजा आशा अहीर ने करवाय था।

3. असीरगढ़ किले का निर्माण क्यों करवाया था ?

राजा आशा अहीर के पास हज़ारों की संख्या में पशु थे।

पशु की सुरक्षा के लिए निर्माण करवाया गया था।

4. असीरगढ़ किले का जीणोंद्वार किसने और कब करवाया था ?

असीरगढ़ किले का जीणोंद्वार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने करवाया था।

5. असीरगढ़ किले का नाम कैसे पड़ा ?

आशा अहीर के पास कई हजारो जानवर थे।

अहीर ने उनके जानवरो की रक्षा करने के लिए ईंटो गारा,मिट्टी,चुने और

पत्थरो का उपयोग करके दीवारे बनवाई उन्हें असीरगढ़ किले का नाम दिया था। 

6 .असीरगढ़ के किले का राजा कौन था?

असीरगढ़ किले का राजा आशा अहीर थे।

7 .अकबर का असीरगढ़ अभियान ?

सम्राट अकबर असीरगढ़ की प्रसिद्धि सुनकर किले पर अधिपत्य स्थापित चाहते थे।

8 .असीरगढ़ में किसका मंदिर है?

किला असीरगढ़ में भगवन शिव का मंदिर है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए – History oF Vijay Vilas Palace Mandvi Gujarat

Conclusion –

आपको मेरा Asirgarh Fort History In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये Asirgarh fort haunted story in hindi, असीरगढ़ का मंदिर और Asirgarh fort mystery से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको किसी जगह के बारे में जानना है। तो कहै मेंट करके जरूर बता सकते है।

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Note –

आपके पास Burhanpur history in hindi, असीरगढ़ किला अश्वत्थामा या Burhanpur fort  की कोई जानकारी हैं।

या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है।

तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद 

1 .स्वयं के किले के नाम से कौन प्रसिद्ध है ?

2 .Ajaigarh fort history in hindi के बारे में आप जानते है ?